श्री विश्वकर्मा पूजा 2025 : सृष्टि के प्रथम शिल्पकार को नमन
भगवान विश्वकर्मा की आराधना से मिलेगी सफलता और समृद्धि
17 सितम्बर 2025 : विश्वकर्मा जयंती और पूजा का शुभ अवसर
निर्माण और सृजन के देवता श्री विश्वकर्मा की महिमा
विश्वकर्मा पूजा : रोजगार और व्यापार में प्रगति का पर्व
प. सीताराम झा: देवताओं के शिल्पी और सृष्टि के प्रथम वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा। ऐसा माना जाता है कि जो लोग निर्माण और सृजन के क्षेत्र से जुड़े हैं, उन्हें भगवान विश्वकर्मा की पूजा, आराधना विशेष रूप से करनी चाहिए और यथासम्भव दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन की जाती है।
इस दिन विधिपूर्वक भगवान विश्वकर्मा की पूजा, आराधना और दान करने से रोजगार और व्यापार में बाधा नहीं आती तथा भगवान श्री विश्वकर्मा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी कहलाते हैं। वे निर्माण और सृजन के देवता हैं। उनकी कृपा से रोजगार और व्यापार को सकारात्मक दिशा मिलती है।
भगवान विश्वकर्मा का स्वरूप और योगदान
वास्तुदेव और माता अंगिरसी के पुत्र भगवान विश्वकर्मा शिल्पकार और रचनाकारों के इष्टदेव हैं। सृष्टि की रचना में उन्होंने ब्रह्माजी की भी सहायता की तथा पूरे संसार का मानचित्र बनाया।
भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्गलोक, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका, सोने की लंका, पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ, इन्द्र का अस्त्र वज्र आदि अनेकों निर्माण किए। ऋग्वेद में भी उनका विशेष महत्व वर्णित है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार संसार में जो भी निर्माण या सृजन होता है, उसके मूल में भगवान श्री विश्वकर्मा ही विद्यमान रहते हैं। वे ‘विद्या और कला’ में निपुणता के साथ भवन, वाहन आदि की सुख-सुविधाएँ भी प्रदान करते हैं। निर्माण-कला, आविष्कार और नवविचार बिना ‘विश्वकर्मा जी’ के अधूरे माने जाते हैं। उनकी आराधना से सभी कार्य बिना विघ्न पूरे हो जाते हैं और बिगड़े हुए काम भी सुधर जाते हैं।
विश्वकर्मा पूजा का लाभ
उनकी पूजा करने से कार्य में सफलता, आत्मविश्वास, संतुष्टि, उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
आज भी हज़ारों मंदिर और भवन विद्यमान हैं, जिनका निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया था।
🌸 आरती 🌸
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शास्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग-ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लिया।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख किया॥
जब रथकार दंपति, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन की दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥


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