मधुबनी: छठ, सामा-चकेवा और परंपराओं की झंकार मिथिला की पहचान रही है जिसका सांस्कृतिक उदाहरण है झंझारपुर और यहां बोली के रूप में मैथिली काफी समृद्ध है. दरभंगा के सीमा से सटा मधुबनी जिले के 10 विधानसभा सीटों में से एक झंझारपुर विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में हमेशा से एक दिलचस्प उदाहरण रही है, जहां सत्ता की लड़ाई से ज़्यादा, परंपरा और विरासत की परीक्षा होती रही है. इसके साथ साथ झंझारपुर एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भी है। लेकिन फिलहाल बात विधानसभा चुनाव की जहां एक बार फिर यहां विकास और बदलाव के साथ परंपरा की अग्निपरीक्षा हैं. सवाल यह है कि क्या उद्योग मंत्री नीतीश कुमार मिश्रा इस सीट पर अपनी राजनीतिक पकड़ को फिर से कायम रख पाएंगे, या जनता इस बार बदलाव का रुख अपनाएगी?
झंझारपुर का इतिहास बताता है कि यहां की राजनीति पर मिश्रा परिवार का वर्चस्व लंबे समय से कायम रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने 1972 से 1990 तक लगातार पांच बार जीत हासिल कर इस सीट को अपनी पहचान बना दिया. उनके बाद बेटे नीतीश मिश्रा ने इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए 2005, 2010 और 2020 में जीत दर्ज की और एक बार फिर से वो मैदान में हैं. यह निरंतरता किसी एक परिवार की राजनीतिक ताकत से ज़्यादा, स्थानीय जनता के भरोसे की गवाही देती है. जो बताता है कि यहां विकास कोई बड़ा मुद्दा नहीं और समीकरण भी ऐसा है जिसे मिश्रा परिवार का वर्चस्व से कोई खास आपत्ती नहीं है. इन सब के बीच जमीन पर जब मौजूदा विधायक को लेकर तारीफ करती तो उनके चेहरे की सिकन बताती है कि लंबे समय से कायम यह भरोसा अब परख के दौर में है. झंझारपुर में विकास की तस्वीर इतनी चमकदार है कि कभी कभी यह तेज धूप में चमकता आईना लगता है. हालांकि यह भी सच्चाई है कि इस क्षेत्र में सड़कें और पुल बन रहे हैं, बिहार का पहला ग्रीन इंडस्ट्रियल ज़ोन यहां आकार ले रहा है, मगर कृषि, पशुपालन और दैनिक मजदूरी पर निर्भर यहां की जनता में रोजगार के स्तर पर बड़े बदलाव की चर्चा भी की जाती है. मिथिला हाट जैसी पहल ने क्षेत्र को पहचान दी है, पर बाढ़, बेरोजगारी और कृषि पर निर्भरता अब भी लोगों की नियति बनी हुई है. कृषि, पशुपालन और दैनिक मजदूरी पर निर्भर है.
जातीय समीकरण की बात करें तो ब्राह्मण, मुसलमान और यादव मतदाताओं की त्रिकोणीय भूमिका यहां हर बार समीकरण तय करती है. जब ये समुदाय एकजुट होते हैं, तो सत्ता का समीकरण भी बदल जाता है. 2015 का चुनाव इसका बड़ा उदाहरण है. हालांकि ब्राह्मण मतदाता यहां एकतरफा हार जीत की ताकत रखते हैं. लेकिन शर्तों के साथ. 2025 के चुनावी समर की बात करें तो एक तरफ जहां फिर से मैदान भाजपा नेता नीतीश कुमार मिश्रा मैदान में है तो उनके सामने इस बार एक नहीं दो- दो चुनौती है. एक तरफ जहां फिर से मैदान में महागठबंधन से VIP अपनी किस्मत आजमा रही हैं तो जनसुराज से केशव भंडारी भी इस बार मैदान में है. इसबार कुल 8 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है।
झंझारपुर सीट केवल एक सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि बिहार में विरासत की राजनीति आज के दौर में कितनी प्रासंगिक रह गई है. नीतीश मिश्रा के लिए यह चुनाव एक और कार्यकाल का नहीं, बल्कि जनता के भरोसे का सवाल है. जनता के लिए यह मौका है, यह तय करने का कि वे विकास की अधूरी कहानी को आगे बढ़ाना चाहती है या नया अध्याय लिखना और इस चुनाव में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि इतिहास की विरासत और भविष्य की उम्मीद के बीच किसका चुनाव करती है.

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