- इस वर्ष 7 सितंबर से पितृपक्ष की शुरूआत होगी.
- आज अगस्त्य मुनि के तर्पण के बाद 14 दिनों का पितृपक्ष शुरू हुआ.
- इस बार विशेष संयोग बनने व नवमी तिथि का क्षय होने के कारण पितृपक्ष 14 दिनों का ही रहेगा.
- तर्पण करने से जहां पितृदोष से मुक्ति मिलती है वहीं पितर द्वारा प्रसन्न होकर अपने वंश को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
- ब्रह्मपुराण के अनुसार पितरलोक देवलोक से ऊपर है इसिलिये हमे देवताओं के पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए.
तर्पण क्या है ?
अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किये गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा उन्हें तृप्त करने की क्रिया सहित देव, ऋषियों और पितरों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसर जिस प्रकार वर्षा का जल सिप में गिरने से मोती, कदली में गिरने से कपूर, खेत में गिरने से अन्न और धूल में गिरने से किचड़ बन जाता है, उसी प्रकार तर्पण के जल से सूक्ष्म देवयोनी के पितर को अमृत, मनुष्य योनि के पितर को अन्न, पशु योनि के पितर को चारा और दुसरे योनि के पितर को उनके अनुरुप भोजन व संतुष्टि प्रदान करते है साथ ही जो व्यक्ति तर्पण कार्य को श्रद्धा पूर्वक पूर्ण करता है उसे हर प्रकार का शुभ-लाभ प्राप्त होता है।
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तर्पण को लेकर शास्त्र क्या कहते हैं ?
तर्पण को लेकर शास्त्र सम्मत मत है कि श्रद्धा और समर्पण ही तर्पण का सार है। हर मनुष्य तीन प्रकार का कर्ज लेकर जन्म लेता है- देव कर्ज, गुरु कर्ज, पितृ कर्ज. इसमे पितृ कर्ज से मुक्ति का एकमात्र साधन है श्रद्धा से किया गया तर्पण. जल, तिल, अन्न से अर्पण किया गया यह कर्म जहां पितरों को तृप्ति प्रदान करता है साथ ही बदले में पितर गण प्रसन्न होकर अपने वंशजो को आयु,आरोग्य से परिपूर्ण और समृद्ध होने का आशीष देते हैं.
पितृ दोष से मिलती है मुक्ति.
जिस प्रकार किसी भी शुभ कार्य करने के लिए पहले भगवान गणेश का पूजन-अर्चन किया जाता है, उसी प्रकार पूर्णिमा को अगस्त्य ऋषि के तर्पण से पितृपक्ष का शुभारम्भ किया जाता है, इस दिन ऋषि अगस्त्य का तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और वे साल भर जल के लिए भटकने से बचते हैं, साथ ही अपने वंश को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर मनुष्य को पितृदोष से मुक्ति दिलाते हैं।
यूं तो पितृपक्ष का महत्व उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है, लेकिन दक्षिण भारत में भी तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकादा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृपंधर्वदा के नाम से मनाया जाता है.
तर्पण के प्रकार –
यह छः प्रकार का होता है। पितृ-तर्पण, मनुष्य तर्पण, देवता तर्पण, भीष्म तर्पण, मनुष्य पितृ तर्पण व यम तर्पण इस बार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अगस्त्य तर्पण के बाद आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आरम्भ हुआ यह पखवाड़ा 21 सीताम्बर को सर्व पितृ अमावस्या को सम्पन्न होगा।



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