
नई दिल्ली | विपक्षी दलों के अलायंस इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। गठबंधन की दिल्ली की चौथी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम फेस घोषित करने के प्रस्ताव पर मतभेद खत्म नहीं हो रही है। जदयू नेता नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरों की बीच अब एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भी खफा होने की जानकारी सामने आई है।
विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम के प्रस्ताव के साथ ही राजनीति की हवा बदल गई है। सबसे ज्यादा निराश और हताश कोई हुआ होगा तो वह है बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार। शायद, नीतीश कुमार गए ही इस आशा में थे कि शायद महागठबंधन उनको प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दे। नितीश कुमार बुझे बुझे से लगे रहे हैं। उनको इस टीस के साथ ही दिल्ली से वापस जाना होगा कि इतने कमजोर विपक्ष के होते हुए भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में कभी उनके नाम पर विचार तक नहीं किया गया।
नीतीश के बाद जिनके तेवर बदले बदले से लग रहे है वो हैं बंगाल सीएम ममता बनर्जी। दीदी का पारा पूरा उतरा हुआ है, लहजा नरम हुआ है। नीतीश और ममता बनर्जी के बाद जिस प्रधानमंत्री की भ्रूण हत्या हुई है वो हैं दिल्ली की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल।
आखिर एक महीने में ऐसा क्या हुआ है कि पूरा महागठबंधन धाराशाई हुआ पड़ा है? शायद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की प्रचंड विजय ने पूरा माहौल ही बदल दिया है। बात सिर्फ 3 राज्यों में जीत की नहीं है। बात है वो मोहरे जो भाजपा ने बिछाये और विपक्ष की तमाम आशाओं को निगल लिया।
जाट, गुर्जर और यादवों को साथ लेकर जिस OBC कार्ड को खेलने की कोशिश की जा रही थी उसका जवाब भाजपा ने कुछ ऐसे दिया है कि लगभग भाजपा विरोधी माने जाने वाले यादव समाज के कार्यकर्ता को मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। यह ऐसा तुरुप का पत्ता है जिसकी कल्पना विरोधी तो छोड़ो स्वयं भाजपा के समर्थको ने नहीं की थी। एक सवर्ण, एक OBC और एक दलित आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने के बाद विपक्ष के पास अब कोई ऐसा मुद्दा नहीं बचा है जो जनमानस को आकर्षित कर सके।
मतलब 2024 का मैदान साफ है और अगला चुनाव भाजपा बनाम भाजपा है जहां भाजपा से रूठे हुए लोग शायद कांग्रेस उम्मीदवार से ज्यादा वोट पा जायेंगे तो ऐसी बदली हुई परिस्थितियों में नीतीश कुमार की वापसी हो जाए तो आश्चर्य चकित नहीं होना चाहिए।
विपक्ष के सामने गठबंधन बचाने से भी बड़ी कोई जिम्मेदारी है तो वो है अगले 2 महीने में कोई सार्थक आंदोलन खडा करना। नीतीश शायद वापस आ जाएं ऐसा लगता है। बांकी देखते हैं क्या होता है….एक बात तो है… वर्तमान राजनीति में नीतीश से बड़ा चाणक्य आज की तारीख में कोई नहीं है। कब किस करवट बैठना है वो अच्छी तरह से जानते हैं।

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