मधुबनी/मिथिला:
मिथिला क्षेत्र में श्रद्धा और लोकपरंपरा से जुड़ा पर्व गबहा संक्रांति इस वर्ष शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास की तुला संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है और इसे विशेष रूप से गृहस्थ परिवारों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।
गबहा संक्रांति के दिन खेतों में जाकर किसान “सेर बराबर फूटिह धान” कहकर आने वाले समय में अच्छी फसल की कामना करते हैं। प्राचीन परंपरा के अनुसार, इस दिन अगहनिया धान (जैसे – सेहमाना, सतरिया, गहहूमा, चचनचूड़ आदि) में “गम्हरी देना” शुभ माना जाता है।
इस दिन से ही कार्तिक मास के धार्मिक कार्यों – जैसे कार्तिक स्नान, धातरिक पूजा, गंगा स्नान और कल्पवास – का शुभारंभ होता है।
सुबह के समय घरों में गोसाउनी पूजा की जाती है। आँगन और ओसारा में अरिपन (अल्पना) बनाया जाता है, जिसमें अष्टदल अरिपन पर पीढ़ी रखकर घी के दीपक जलाए जाते हैं। ताम्बे की थाली में चांदी का सिक्का, दूब, धान, सुपारी और पान का डाँट रखकर तीन बार जल, तीन बार सिंदूर और तीन बार आँचल से कहा जाता है —
“अन्न धन लक्ष्मी घर जाइ, दारिद्रय बाहर जाउ।”
इसके बाद गोसाउनी की पूजा कर अरिपन मिटा दिया जाता है।
सूर्योदय के बाद आँगन में तीन अंगुल चौड़ी पंक्तियों में पाँच-पाँच गोल अरिपन बनाए जाते हैं। फिर कुमारी कन्या नए वस्त्र पहनकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके उन पर चीपड़ी (गोबर-से बनी गोलियां) रखती हैं, जिन पर सिंदूर, पिठार और फूल लगाया जाता है। इसके बाद गौरी पूजा की जाती है।
परंपरा के अनुसार, इस पूजा में कन्या द्वारा चीपड़ी रखने का उद्देश्य यह होता है कि आगे चलकर गृहस्थ जीवन में उसे श्रम, सेवा और सहनशीलता के महत्व का अनुभव हो।
मिथिला में यह पर्व कन्याओं और गृहस्थ परिवारों के लिए विशेष महत्व रखता है। जिन घरों में छोटी कन्या नहीं होती, वहाँ पड़ोस की बेटियाँ यह कार्य करती हैं। यही चीपड़ी बाद में नवान्न पर्व के दौरान अग्नि स्थापना में उपयोग की जाती है।
संकलनकर्ता: सीताराम झा

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